अहमद फ़राज़: उर्दू शायरी के बेमिसाल शायर

अहमद फ़राज़ (असली नाम: सैयद अहमद शाह) उर्दू साहित्य के उन बेहतरीन शायरों में गिने जाते हैं जिन्होंने मोहब्बत, जज़्बात और समाजी हकीकतों को अपनी शायरी में बखूबी उकेरा। उनका जन्म 12 जनवरी 1931 को कोहाट, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा (अब पाकिस्तान में) हुआ था। फ़राज़ ने पेशावर यूनिवर्सिटी से उर्दू और फ़ारसी में एम.ए. किया और अपने शायराना सफर की शुरुआत कॉलेज के दिनों में ही कर दी थी।

उनकी ग़ज़लें न सिर्फ इश्क़ और रोमांस की खूबसूरती को बयान करती हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक अन्याय और तानाशाही के ख़िलाफ़ भी बेबाकी से लिखा। यही वजह थी कि उन्होंने पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही का विरोध किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और फिर छः वर्षों तक यूरोप और कनाडा में निर्वासन में रहना पड़ा।

फ़राज़ को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया, जिनमें अदमजी अवार्ड, अबासीन अवार्ड, कमाल-ए-फ़न अवार्ड और हिलाल-ए-इम्तियाज़ शामिल हैं। हालांकि, देश की राजनीतिक स्थितियों से असंतुष्ट होकर उन्होंने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार लौटा दिया था। मरणोपरांत, उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा हिलाल-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया।

उनकी प्रमुख कृतियों में तनहा तनहा, दर्द-ए-आशोब, जानां जानां, शबख़ून, मेरे ख़्वाब रेज़ा रेज़ा, नाबीना शहर में आईना और ख़्वाब-ए-गुल परेशान है जैसी संग्रह शामिल हैं। फ़राज़ की शायरी न केवल मुहब्बत की मिठास लिए हुए है, बल्कि उसमें इंसाफ़ और बग़ावत की आग भी नजर आती है। 25 अगस्त 2008 को इस महान शायर का इंतकाल हो गया, लेकिन उनकी शायरी आज भी दुनिया भर के उर्दू अदब प्रेमियों के दिलों में जिंदा है।

“और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे,
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया”

यह शेर उनकी लोकप्रियता का गवाह है, जो उनकी शायरी को अमर बनाता है।