मोहब्बत के शेर (Couplets)
और भी दुख हैं ज़माने
में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
— फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
उजाले अपनी यादों के
हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो
जाए
— बशीर बद्र
इश्क़ ने ‘ग़ालिब‘ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
— मिर्ज़ा ग़ालिब
ये इश्क़ नहीं आसाँ
इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
— जिगर मुरादाबादी
रंजिश ही सही दिल ही
दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
— अहमद फ़राज़
मोहब्बत में नहीं है
फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे
दम निकले
— मिर्ज़ा ग़ालिब
उस की याद आई है
साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
— राहत इंदौरी
एक मुद्दत से तिरी
याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
— फ़िराक़ गोरखपुरी
अच्छा ख़ासा बैठे
बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता
हूँ
— अनवर शऊर
होश वालों को ख़बर
क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़
है
— निदा फ़ाज़ली
वो तो ख़ुश-बू है
हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
— परवीन शाकिर
अब के हम बिछड़े तो
शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
— गुलज़ार
इश्क़ पर ज़ोर नहीं
है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
— मिर्ज़ा ग़ालिब
चुपके चुपके रात दिन
आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
— हसरत मोहानी
हुआ है तुझ से
बिछड़ने के बा‘द
ये मा‘लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
— अहमद फ़राज़
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज
है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
— अकबर इलाहाबादी
किस किस को बताएँगे
जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
— अहमद फ़राज़
दिल धड़कने का सबब
याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
— नासिर काज़मी
आप के बा‘द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
— गुलज़ार
करूँगा क्या जो
मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
— ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
कोई समझे तो एक बात
कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
— फ़िराक़ गोरखपुरी
तिरे इश्क़ की इंतिहा
चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
— अल्लामा इक़बाल
ग़म और ख़ुशी में
फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
— साहिर लुधियानवी
तुम को आता है प्यार
पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
— अमीर मीनाई
तेरा मिलना ख़ुशी की
बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
— साहिर लुधियानवी
अब जुदाई के सफ़र को
मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
— मुनव्वर राना
तुम्हारी याद के जब
ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
— फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आज देखा है तुझ को
देर के बअ‘द
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
— नासिर काज़मी
इक रात वो गया था
जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
— फ़रहत एहसास
दिल में किसी के राह
किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
— जिगर मुरादाबादी
इश्क़ से तबीअत ने
ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
— मिर्ज़ा ग़ालिब
भूले हैं रफ़्ता
रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से
पूछिए
— ख़ुमार बाराबंकवी
ऐ दोस्त हम ने
तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
— नासिर काज़मी
जब भी आता है मिरा
नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
— क़तील शिफ़ाई
मिलना था इत्तिफ़ाक़
बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
— अंजुम रहबर
उस को जुदा हुए भी
ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत
हुआ
— अहमद फ़राज़
झुकी झुकी सी नज़र
बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि
नहीं
— कैफ़ी आज़मी
दिल की चोटों ने कभी
चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
— जोश मलीहाबादी
चंद कलियाँ नशात की
चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल
कर उदास रहता हूँ
— साहिर लुधियानवी
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत
का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
— जिगर मुरादाबादी
अब तक
दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
— अहमद फ़राज़
आशिक़ी सब्र-तलब और
तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
— मिर्ज़ा ग़ालिब
तुम्हारे शहर का मौसम
बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
— क़ैसर-उल जाफ़री
फ़ासले ऐसे भी होंगे
ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
— अदीम हाशमी
याद रखना ही मोहब्बत
में नहीं है सब कुछ
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
— जमाल एहसानी
आरज़ू है कि तू यहाँ
आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
— नासिर काज़मी